कांग्रेस से ज्यादा अखिलेश यादव को क्यों इंडिया गठबंधन की ज्यादा जरूरत है, पूरी राजनीति समझिए

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की चुनौती इस समय काफी बढ़ गई है। उन्होंने विधानसभा उपचुनाव में स

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की चुनौती इस समय काफी बढ़ गई है। उन्होंने विधानसभा उपचुनाव में सभी 9 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। उनका नामांकन दाखिल हो चुका है। चुनावी मैदान में अब अखिलेश यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने जमे-जमाए पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए पॉलिटिक्स को एक बार फिर जमीन पर उतरने की है। हालांकि, लोकसभा चुनाव 2024 की तर्ज पर अखिलेश यादव के साथ इस समय कांग्रेस खड़ी नहीं दिख रही है। कांग्रेस इस बार विधानसभा उपचुनाव के मैदान में साइलेंट प्लेयर की भूमिका में है। पार्टी ने समाजवादी पार्टी को समर्थन का ऐलान तो कर दिया है। हालांकि, बड़ी ही चतुराई के साथ कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने साफ कर दिया कि इस बार के उपचुनाव में कांग्रेस का कोई उम्मीदवार नहीं है।

कांग्रेस की बदली रणनीति ने किया हैरान

यूपी की राजनीति वर्ष 2017 और 2024 में कांग्रेस ने सपा के साथ गठबंधन किया। दोनों ही समय पार्टी अखिलेश यादव के पीछे ही खड़ी दिख रही थी। लेकिन, इस बार के उपचुनाव में पार्टी की रणनीति ने सपा को हैरान कर दिया है। अखिलेश यादव के अकेले चुनाव में उतरने की घोषणा के बाद कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने बड़े ही सधे अंदाज में अखिलेश यादव को जवाब दे दिया।

अजय राय ने कहा कि कांग्रेस यूपी विधानसभा उपचुनाव नहीं लड़ रही है। वहीं, अखिलेश यादव ने सभी नौ सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ी करने के ऐलान के समय कहा था कि कांग्रेस के उम्मीदवार समाजवादी पार्टी के चुनाव चिह्न यानी साइकिल की सवारी करते दिखेंगे। अजय राय के बयान ने साफ कर दिया कि उपचुनाव में कांग्रेस का कोई उम्मीदवार खड़ा ही नहीं हो रहा है। सिंबल कोई भी क्यों न हो।

कांग्रेस ने बड़ी की चतुराई से स्पष्ट कर दिया है कि उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव जिस तरह की पॉलिटिक्स कर रहे हैं, उसमें वह साथ नहीं है। दरअसल, कांग्रेस उत्तर प्रदेश में बराबरी की हिस्सेदारी चाह रही थी। 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर पार्टी की दावेदारी पांच सीटों की थी।

अखिलेश यादव ने पहले कांग्रेस को दो सीटों पर समेटने की कोशिश की। बाद में बात न बनती देख फूलपुर विधानसभा सीट का ऑफर दिया। लेकिन, फूलपुर विधानसभा सीट से पहले ही समाजवादी पार्टी ने एक मुस्लिम उम्मीदवार मुज्तबा सिद्दीकी को खड़ा कर बड़ा दांव खेल दिया था। अगर कांग्रेस वहां से अपने उम्मीदवार सुरेंद्र यादव को खड़ा करती तो कोई फायदा नहीं होता।

कांग्रेस ने समझी राजनीति

कांग्रेस के सुरेंद्र यादव के उम्मीदवार बनाने से भी सपा को ही फायदा था। यादव वोट बैंक सपा के साथ मजबूती से खड़ा है। ऐसे में सहयोगी कांग्रेस से एक यादव के उम्मीदवार बनाए जाने का संदेश सपा के वोटरों के बीच ही सकारात्मक तरीके से जाता। वहीं, कांग्रेस के लिए चुनौती अल्पसंख्यक वोट बैंक को साधने की थी। मुसलमान के बीच एक बड़ा संदेश जाता कि पार्टी ने उनके उम्मीदवार का टिकट कटवा दिया।

अल्पसंख्यक वोट बैंक को साधने के लिए कांग्रेस ने फूलपुर से अपने कदम पीछे खींच लिए। समाजवादी पार्टी को चुनावी मैदान में खड़ा होने दिया। कांग्रेस की यह राजनीति अब अखिलेश यादव के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। अगर पार्टी विधानसभा उपचुनाव में मन-मुताबिक प्रदर्शन नहीं करती है तो कांग्रेस का दबाव बढ़ेगा।

पार्टी को बड़ा बनाने के लिए चाहिए साथ

अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने के बड़े दावे किए। पार्टी इसीलिए इंडिया गठबंधन के साथ आई, ताकि देश भर में पार्टी को विस्तारित करने में मदद मिलेगी। हालांकि, पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी को किसी भी प्रदेश में उचित तरजीह मिलती नहीं दिखी है।

चाहे मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव हो, राजस्थान विधानसभा चुनाव या फिर हरियाणा विधानसभा चुनाव, इन तमाम चुनावों के दौरान कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी को कोई भाव नहीं दिया। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी इस समय इंडिया गठबंधन के तहत एकजुट हैं। इसके बाद भी कांग्रेस ने सपा को किनारे लगा दिया।

महाराष्ट्र में भी नहीं बदली स्थिति

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी समाजवादी पार्टी के लिए स्थिति बदलती नहीं दिख रही है। चुनाव घोषणा तक महाराष्ट्र में अखिलेश यादव से लेकर अबु आजमी तक महा विकास अघाड़ी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने का दावा कर रहे थे। पार्टी ने अपने जनाधार के आधार पर 12 सीटों की मांग भी कर दी थी। हालांकि, समाजवादी पार्टी को कांग्रेस और एनसीपी शरद पवार गुट ने धोबिया पछाड़ दे दिया।

महाराष्ट्र में सपा ने पांच सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान करते हुए उम्मीदवार भी दे दिए थे। वहां कांग्रेस अपने कोटे से सपा को सीटें देने को तैयार नहीं है। कुछ यही हाल एनसीपी शरद पवार और शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट का भी है। सपा के टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर फहाद अहमद ने पाला बदल लिया है।

अणुशक्ति नगर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए शरद पवार की एनसीपी का दामन थाम लिया है। वहीं, सपा के वरिष्ठ नेता अबु आसिम आजमी के खिलाफ नवाब मलिक ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। इसने सपा की टेंशन बढ़ा दी है।

दुविधा में हैं अखिलेश

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव महाराष्ट्र में बदली राजनीति पर कुछ भी बोल नहीं पा रहे हैं। रविवार को उनका एक बयान आया, जो इस समय खूब चर्चा में है। अखिलेश ने कहा कि हम लोग इग्नोर होने वाले लोग हैं। राजनीति में त्याग की कोई जगह नहीं है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को लेकर दिए गए इस बयान को कांग्रेस के साथ गठबंधन से भी जोड़ा जा रहा है। यूपी उपचुनाव की ही सियासी मजबूरी के कारण सपा खुलकर कांग्रेस पर हमलावर नहीं हो पा रही है।

अखिलेश यादव ने कहा है कि हमारी पहली कोशिश गठबंधन में बने रहने की होगी। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि राजनीति में त्याग के लिए कोई भी जगह नहीं है। अगर वे हमें गठबंधन में नहीं रखना चाहते हैं तो हम वहीं चुनाव लड़ेंगे, जहां हमारी पार्टी को वोट मिलेंगे। सपा संगठन जहां पहले से काम कर रहा है, जिससे गठबंधन को नुकसान न हो।

सपा की बढ़ी है मजबूरी

सपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती खुद को राष्ट्रीय स्तर पर साबित करने की है। लोकसभा चुनाव में 37 सीटें जीतने के बाद अखिलेश यादव को उम्मीद थी कि उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर उचित तरजीह मिलेगी, लेकिन सपा को कांग्रेस किसी भी प्रदेश में खड़ा होने का स्पेस तक नहीं दे रही है। यह उनके लिए सबसे बड़ी परेशानी है। वहीं, समाजवादी पार्टी की सबसे बड़ी चुनौती यूपी उपचुनाव भी है।

पार्टी के प्रदर्शन में अगर गिरावट आती है तो विधानसभा चुनाव 2027 में अपने लिए एक बेहतर स्थिति बनाना मुश्किल होगा। सबसे मुश्किल सवाल कांग्रेस की तरफ से आएगा। साफ है कि अखिलेश यादव को इस समय इंडिया गठबंधन की सबसे अधिक जरूरत है। वहीं, कांग्रेस अपनी अलग रणनीति के साथ अलग जमीन तैयार करती दिख रही है।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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